कछुए की बहिन
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’21 Feb 2019
कछुआ तालाब से निकला और धीरे–धीरे सरक कर खेत की मेंड़ पर आकर बैठ गया। उसे तालाब से बाहर का संसार बहुत ही प्यारा लगा। स्कूल से लौटते खिलखिलाते बच्चों को देखकर उसका मन मचल उठा। उसने सोचा– मैं भी बच्चों की तरह खिलखिलाता। कन्धे पर बस्ता लटकाकर स्कूल जाता।
उसने अपना सिर निकाल कर बच्चों की तरफ देखा। दो शैतान बच्चों ने उसको देख लिया। फिर क्या था –दोनों उसे बारी–बारी से ढेले मारने लगे। कछुए ने अपने हाथ, पैर, सिर सब एकदम समेट लिये। खोपड़ी पर लगातार ढेलों की मार से उसे लगा कि वह मर जाएगा। लड़कों के साथ एक छोटी लड़की भी थी। वह चिल्लाई–
"क्यों मार रहे हो? इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"
"तुम्हें बहुत दु:ख हो रहा है। यह तुम्हारा भाई है क्या?" एक शैतान लड़के ने कहा।
"इसे राखी बाँध देना" – दूसरा लड़का कछुए को ढेला मारकर बोला।
लड़की की आँखों में आँसू आ गए – "यह मेरा भाई हो या न हो, पर यह दुश्मन भी नहीं है।"
"अरे, ओ कछुए की बहिन! अपने घर चली जा" –दूसरा बोला।
सभी–बच्चे ‘कछुए की बहिन, कछुए की बहिन! कछुए की बहिन!’ कहकर जोर–जोर से हँसने लगे। उन दोनों शैतान लड़कों ने कछुए को उल्टा करके ढेलों की बीच में रख दिया।
लड़की चुपचाप अपने घर चली गई।
घर पहुँचने पर उसका मन बहुत उदास हो गया। वह सोचने लगी– बेचारा कछुआ! कब तक उल्टा पड़ा रहेगा?
उसे लगा – जैसे वह सचमुच उसका भाई ही हो। वह चुपचाप घर से निकली और तालाब के किनारे जा पहुँची। कछुआ उल्टा पड़ा हुआ था। वह सीधा होने के लिए छटपटा रहा था। लड़की ने चारों तरफ देखा। आसपास कोई नहीं था। वह उसे उठाकर तालाब की तरफ दौड़ी। उसने कछुए को तालाब के पानी में छोड़ दिया।
कछुए ने अपनी लम्बी गर्दन निकाली। चमकती छोटी–छोटी आँखों से लड़की की तरफ प्यार से देखा और फिर गहरे पानी में उतर गया।
लड़की खुश होकर घर की तरफ दौड़ी। अब उसे कोई ‘कछुए की बहिन’ कहे तो वह नहीं चिढ़ेगी।
कछुए ने भी फिर कभी तालाब से निकल कर घूमने की हिम्मत नहीं की।
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