खड़े जहाँ पर ठूँठ
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’1 May 2019
खड़े जहाँ पर ठूँठ
कभी वहाँ
पेड़ हुआ करते थे।
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे।
छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार।
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे।
बदल गए हैं
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल-बवण्डर
सिर पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे कुएँ,
बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे।
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