बहता जल
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’23 Feb 2019
हम तो बहता जल नदिया का,
अपनी यही कहानी बाबा।
ठोकर खाना उठना गिरना,
अपनी कथा पुरानी बाबा।
कब भोर हुई कब साँझ हुई,
आई कहाँ जवानी बाबा।
तीरथ हो या नदी घाट पर,
हम तो केवल पानी बाबा।
जो भी पाया वही लुटाया,
ऐसे औघड़ दानी बाबा।
अपने क़िस्से भूख-प्यास के,
कहीं न राजा-रानी बाबा।
घाव पीठ पर मन पर अनगिन,
हमको मिली निशानी बाबा।
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