एक बच्चे की हँसी
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’20 Feb 2019
खो गई है
एक बच्चे की हँसी
यहीं कहीं इस भीड़ में।
कलियों से होंठों पर
जड़ दी गई हज़ारों कीलें
कँटीले विज्ञापनों की -
जिनमें प्रतिनायक के
टेढ़े-मेढ़े चेहरे हैं
और हैं उधार ली गई आवाज़ें
मकड़जाल में लिपटीं -
बेहुदी आकृतियाँ
खोखली हँसी
आपाधापी मचाती
दृष्टिहीन भगदड़ -
इसी में चिथ गए हैं
अंकुर - से नन्हें पाँग।
बुझ गई है दृष्टि
गले में फँसकर
रह गई है चीख
यहीं इसी अंधी भीड़ में
गुम हो गई
एक बच्चे की दूधिया हँसी
हो सके तो
ढूँढकर ला दीजिए।
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