आग के ही बीच में
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
आग के ही बीच में अपना बना घर देखिए
यहीं पर रहते रहेंगे हम उम्रभर देखिए।
एक दिन वे भी जलेंगे, जो तपन से दूर हैं
आँधियों का उठ रहा दिल में वहाँ डर देखिए।
पैर धरती पर हमारे, मन हुआ आकाश है
आप जब हमसे मिलेंगे, उठा यह सर देखिए।
जी रहे हैं वे नगर में, द्वारपालों की तरह
कमर सज़दे में झुकी है, पास जाकर देखिए।
टूटना मंज़ूर पर झुकना हमें आता नहीं
चलाकर ऊपर हमारे, आप पत्थर देखिए।
भरोसे की बूँद को, मोती बनाना है अगर
ज़िन्दगी की लहर को, सागर बनाकर देखिए।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आग के ही बीच में
- इस रजनी में
- उगाने होंगे अनगिन पेड़
- उजाले
- एक बच्चे की हँसी
- काँपती किरनें
- किताबें
- क्या करें?
- खाट पर पड़ी लड़की
- घाटी में धूप
- जीवन के ये पल
- नव वर्ष
- बच्चे और पौधे
- बरसाती नदी
- बहता जल
- बहुत बोल चुके
- भोर की किरन
- मुझे आस है
- मेघ छाए
- मेरी माँ
- मैं खुश हूँ
- मैं घर लौटा
- शृंगार है हिन्दी
- सदा कामना मेरी
- साँस
- हैं कहाँ वे लोग?
- ज़रूरी है
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं