नया तुम गीत सुनाओ
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता डॉ. विनीत मोहन औदिच्य1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
(सॉनेट)
जीवन के तुम मीत, बनो अब नित्य सहारा
नाव न होगी दूर, दिखे जो पास किनारा
सावन के जो गीत, तुझे हर बार लुभाते
आँगन मचती धूम, मुझे कर शोर बुलाते।
आज उठी है तान, नया तुम गीत सुनाओ
होकर मन से लीन, बड़ा त्योहार मनाओ
रंग चटख तुम घोल, भरो अभिमान मरेगा
चल नटवर की चाल, यहाँ आह्लाद भरेगा।
सोच रहा हूँ मौन, हुई कब प्रीति पुरानी
क्रूर नियति का खेल, लिखे वाचाल कहानी
रूप करे जब मान, सदा आभार करूँगा
सत्य वचन तब बोल, प्रिया उपहार बनूँगा।
जीत रहे अनमोल, नहीं तुम हार वरोगे।
ले प्रभु का तुम नाम, दुखों को पार करोगे॥
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