माँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विनीत मोहन औदिच्य15 May 2025 (अंक: 277, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
(सॉनेट)
एक शब्द..एक उच्चारण..एक ध्वनि
शैशव से वृद्धावस्था पर्यंत रहता साथ
वह आशीष.. वह मनोबल.. वह हाथ
नहीं होती पृथक... उससे मेरी अवनि
अटल अचल मेरु सा..वह शब्द मुझे
कभी देता आश्वासन कभी सांत्वना
अश्रु-लहू से धोकर मेरी पीड़ा -वेदना
निर्द्वन्द आजीवन रखता सुरक्षित मुझे
न रखता कोई आशा..न अपेक्षा कभी
दया -करुणा का सागर सा तरल हृदय
दिया है सदा जो शब्द ईश्वर का आलय
पक्षी सा शावक का हरता जो दुःख सभी
वह शब्द,वह ध्वनि,वह उच्चारण है ‘माँ’
जिसके चरणों में रहती मेरी पूरी दुनिया।
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