कृष्णा वर्मा - माँ - 2
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु कृष्णा वर्मा23 Feb 2019
माँ दुआओं सी
महकी फिज़ाओं सी
तरू छाँव सी।
माँ अनमोल
मृदु जिसके बोल
ममता पगे।
कैसी अनोखी
माँ ममता लुटाए
तो चैन पाए।
प्रभु मूरत
घर बिराजे, खोजें
क्यों मंदिर में।
उफ ना करे
जले बन के दिया
सहती सेक।
उलझे जब
जीवन की गुत्थी माँ
तू देती युक्ति।
माँ सोंधी गंध
है प्यार भरी ब्यार
भीनी फुहार
पुतले सब
माटी के, पर माँ की
माटी विशेष
नेह प्रेम की
मूरत माँ छलके
सुधा कलश।
माँ चन्दन
माँ कपूर बनके
बाँटे महक।
ख़ुश नसीब
पाएँ माँ की ममता
रहें क़रीब।
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