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वादा 

 

सुबह-सवेरे स्कूल के लिए तैयार होकर नितिन और निधि पापा के पास आए। 

एक ही स्वर में बोले, “पापा याद है ना आज कौन सी तारीख़ है?” 

हँसते हुए पापा ने कहा, “हाँ-हाँ सब याद है बेटा, आज पहली तारीख़ है और तुमसे किया वादा भी याद है। चलो अब जल्दी से जाओ, तुम्हारी बस के आने का समय हो गया है।” 

पति को चाय का कप पकड़ाते हुए माँ ने कहा, “यह लीजिए, मैं ज़रा बच्चों को गेट तक छोड़ आऊँ।”

“बॉय मम्मी,” बस की सीढ़ी पर पाँव रखते हुए दोनों ने फिर दोहराया, “मम्मी आप भी पापा को दोबारा याद दिला देना, शाम को हमारी चीज़ें लेकर आएँ।” 

“हाँ-हाँ दिला दूँगी याद, मन लगाकर पढ़ना।” 

बच्चे बड़ी उत्सुकता से शाम होने की इंतज़ार करते रहे। 

उधर रास्ते भर परेशान प्रणय सोचता आ रहा था कैसे सामना करूँगा बच्चों का। कैसे बताऊँगा कर्ज़दारों ने आज ऐसा घेरा कि घर के राशन, स्कूल की फ़ीस और बिजली के बिल तक भरने के पैसे नहीं बचे। 

बुझे मन और भारी क़दमों से कैसे प्रणय घर तक आया वही जानता है। 

जैसे ही दरवाज़े की घंटी बजी, दोनों बच्चों के चेहरे ख़ुशी से खिल गए। 

दोनों भागते हुए जब तक दरवाज़ा खोलने पहुँचे तब तक मम्मी ने दरवाज़ा खोल दिया था। 

पापा के ख़ाली हाथ और उदास आँखें देखकर झट से बच्चे मुस्कुरा दिए और उस क्षण प्रणय को लगा जैसे वह मर गया। 

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