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कृष्णा वर्मा - हाइकु - वसंत

 

1. 
बौरी हवाएँ 
फिर से सपनों को 
बोने के दिन। 
2.
अधरों पर 
आँक रही सतिए 
रीत वासंती। 
3.
सिंदूरी बातें 
चुटकी भर साँसें 
जादू सा कातें। 
4.
पहुनाई है 
घर-घर में गंध 
आया वसंत। 
5.
सिरजी यादें 
वंशी की धुन हुईं
उखड़ी साँसें। 
6.
अंजुरी भर 
लुटाए धरा प्यार 
ऋतु शृंगार।
7.
ऋतु पन्नों पे 
लय और छंदों की 
रची रंगोली। 
8.
रुत चहकी 
भीतर औ बाहर 
गीत वासंती। 
9.
फूलों की झोली 
बगराए बसंत 
महकी हवा। 
10.
धरा के अंग  
चूनर सतरंगी  
फूलों ने रंगी। 
11.
दे गया कौन 
ऋतु अलख जगा 
सुख की दुआ। 
12.
गाएँ हवाएँ
अहसास फागुनी 
नेह-इच्छाएँ। 
13.
रुत फागुन 
बाँचे प्रेम कथाएँ 
जागी दिशाएँ।  
14. 
बेबस मन
सुगंध की रागिनी
गाए पवन।
15. 
ऋतु ख़ुमार
रोके न रुक रहा
नेह का ज्वार।
16. 
वैशाख आए
छिपूँ कौन पट जा 
लाज लजाए।
17. 
तनें बिरवे
हो संयम हलाक
रंगी पोशाक।
18. 
ऋतु प्रबंध
टूटी हैं संयम की
सारी सौगंध।
19.
कौन चितेरा
है ऋतु ख़ुशरंग
मीठे प्रसंग।
20. 
जगे सृष्टि के
अर्ध निद्रित नैन
सरका चैन। 
21. 
शिला सी देह
लरजी बाँसुरी सी
तेरे गीतों से।
22. 
उमड़ा प्यार
पी के सत्कार बनी
तोरणद्वार। 

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