कृष्णा वर्मा - माँ - 1
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु कृष्णा वर्मा23 Feb 2019
खिलाती है माँ
संस्कारों की ख़ुराक
आयु पर्यंत।
माँ छोड़ जाए
आदर्शों की वसीयत
बच्चों के नाम।
माँ की महिमा
अनंत असीम है
शब्दों के पार।
आँसू छिपा के
मुस्कुराने की कला
विशेषज्ञ माँ।
माँ संग सोना
कथा की परी बन
आकाश छूना।
माँ तुलसी है
माँ पर्व माँ रंगोली
पावन जोत।
घर की जड़ें
मज़बूत करती माँ
समर्पण से।
बेबसी पीए
दुखों को धोए गूँधे
आटे में दर्द।
मैं पहनाऊँ
निज देह के जूते
कर्ज़ चुके ना।
माँ के दूध का
कर्ज़ चुके जो बनो
सुप्रतिष्ठित।
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