बेटियाँ
कथा साहित्य | लघुकथा कृष्णा वर्मा1 Mar 2019
अंकिता को दरवाज़े पर देख अनीश की बाँछें खिल गईं बोला, "अंदर आओ अंकिता कितने दिनों बाद आई हो मुझे तो लगा तुम अपने भाई को भूल ही गई हो।"
"नहीं भैया! ऐसा कभी हो सकता है भला! कई दिनों से आपकी बहुत याद आ रही थी। आज तो इतना मन हुलसा कि रहा ही न गया सो चली आई।"
बैठक में पहुँचते ही अनीश ने ख़ुशी से चहकते हुए पत्नी को आवाज़ लगाई, "नीला, देखो अंकिता आई है।"
कुछ क्षण तक जब कोई उत्तर नहीं मिला तो स्वयं उठ कर उसे बुलाने गया। नीला साथ वाले कमरे में कपड़े समेट रही थी। अनीश को देख कर फूले मुँह से बोली, "सुन लिया, आ रही हूँ।"
"तुमने मुँह क्यों फूला रखा है?”
खीझी सी बोली, "मुँह तो फूलेगा ही ना। कई दिन से बबलू आप्पुघर जाने की कह रहा था। सोचा था आज उसे घुमाने ले जाएँगे और लौटते हुए मुझे अपने कुछ कपड़े ख़रीदने थे वह भी ख़रीद लाएँगे। और आज ही यह महारानी आ टपकी। भला तुम्हारी बहनों को कोई और काम नहीं क्या? कभी एक आ धमकती है तो कभी दूसरी। मुझे तो लगता है दोनों जायदाद के हिस्से की जुगत में हैं।"
सुनते ही अनीश तमतमा गया और बोला, "अपनी ऐसी ओछी सोच अपने तक ही रखो। जाओ जाकर चाय-नाश्ते का इंतज़ाम करो।"
दूसरे कमरे में हुआ वार्तालाप भले दबे शब्दों में ही था मगर अंकिता के कानों तक पहुँच ही गया और सुनते ही उसका मन तीव्र हवा के वेग से भक्क से बुझे दीप सा बुझ गया। अब तो दो मिनट भी वहाँ बैठना उसे भारी हो रहा था। इतने में खिसियानी हँसी चिपकाए अनीश बैठक में लौट आया। पीछे-पीछे नीला भी कृत्रिम हँसी हँसते हुए दाख़िल हुई। अंकिता से मिली हालचाल पूछा। कुछ ही देर में चाय बना लाई। अनमने मन से जैसे-तैसे अंकिता ने चाय के घूँट अन्दर उड़ेले और चलने को खड़ी हो गई।
"अच्छा भैया, चलती हूँ।"
आश्चर्य से उसे देख अनीश ने पूछा, "क्या हुआ अंकिता इतनी जल्दी किस बात की है?”
दुख पर परदा डालने को बहाना लगाते हुए बोली, "भैया बैंक में ज़रूरी काम है। वैसे भी आज शनिवार है तो बैंक दो बजे बंद हो जाएगा, यदि समय से न पहुँची तो काम रह जाएगा।"
इतना कहते ही तुरंत विदा लेकर चल दी और रास्ते भर भाभी के कहे शब्द उसका हृदय कोंचते रहे। सोचती रही कि भाभियाँ भी तो किसी की बहन-बेटियाँ ही होती हैं फिर ननदों का मन क्यों नहीं पढ़ पातीं? क्यों नहीं समझ पातीं कि उनकी जड़ें यहीं पर हैं। शायद वह अपनों के प्यार से अपनी जड़ें सींचने आती होंगी। शायद वो मायके के आँगन में अपना बचपन खोजने आती होंगी। या वो भाई में अपने पिता और भाभी में माँ की छवि ढूँढ़ने आती होंगी। क्यों माँ के बाद अपने ही घर की देहरी ऊँची हो जाती है बेटियों के लिए ।
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Savita Aggarwal 2019/06/18 03:36 PM
Bahut sundar kahan I hai haardik badhaai krishna ji .