हैप्पी मदर्स डे
कथा साहित्य | लघुकथा कृष्णा वर्मा23 Feb 2019
फोन की घंटी बजी देखा तो रमाजी का फोन था, “नमस्कार रमाजी कहिए कैसी हैं?”
“मैं ठीक हूँ तुम सुनाओ निशा सब कुशल-मंगल?"
"जी बिल्कुल।"
"काफी समय हो गया मिले हुए बात करने को मन हो रहा था इसीलिए फोन कर दिया। कहीं तुम ख़ास काम में व्यस्त तो नहीं थीं?
"नहीं-नहीं ऐसा कुछ विशेष नहीं कर रही थी। आपने फोन किया बहुत अच्छा लग रहा है पहले तो कभी-कभी आप मिल लेती थीं लेकिन आज-कल तो बिलकुल ही घर पर ही रहने लगीं।
"बस जब से अनु ने नौकरी के लिए जाना शुरू किया है मैं गुड़िया के साथ इतना व्यस्त हो गई हूँ कि फुर्सत ही नहीं मिलती| क्यों नहीं तुम ही आ जातीं। आज साथ बैठ कर चाय भी पिएँगे और बात-चीत भी हो जाएगी।"
"चलिए ठीक है दोपहर के खाने के बाद आती हूँ।"
करीब चार बजे निशा ने घंटी बजाई, दरवाज़ा खोलते ही रमाजी के मुखमंडल पर ख़ुशी झलक गई, "आओ-आओ निशा बहुत अच्छा लग रहा है मिलकर।"
निशा और रमाजी बैठकर बात-चीत करती रहीं बीच में उठकर रमाजी चाय-नाश्ता ले आईं। चाय पीते-पीते बताती रहीं कि गुड़िया के साथ कैसे समय निकल जाता है, दिन का पता ही नहीं चलता।
"आज गुड़िया घर पर नहीं है क्या?"
"घर पर ही है बस अभी थोड़ी देर पहले ही सोई है। आज-कल उसके दाँत आ रहे हैं तो चिड़चिड़ी सी हो गई है।
निशा ने पूछ ही लिया, "आज आप भी कुछ उखड़ी-उखड़ी सी लग रही हैं सब ठीक तो है? तबियत तो ठीक है ना?"
"हाँ सब ठीक है थोड़ा थक गई हूँ, उम्र भी तो हो रही है। इतना काम अब कहाँ हो पाता है। ऊपर से गुड़िया को दिन भर सम्भालना। आज तो अनु ने हद ही कर दी घर का काम यूँही फैला छोड़ इतनी जल्दी चली गई कि मेरे उठने का इंतज़ार भी नहीं किया। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे। बस यही सोच मन खिन्न सा हो गया था। सोचा तुम से ही बात-चीत कर के मन हलका कर लूँ। अनु को क्या चिंता, मैं हूँ ना सब काम देखने के लिए।"
बातों का सिलसिला अभी ज़ारी ही था कि दरवाज़े की घंटी बजी और उधर से गुड़िया के रोने की आवाज़ आई।
"काफी देर से सो रही थी शायद उठ गई है, रमाजी आप गुड़िया को देखो, दरवाज़ा मैं खोल देती हूँ।"
निशा ने दरवाज़ा खोला सामने अनु खड़ी थी।
"नमस्ते आंटी आप कब आईं?"
"बस थोड़ी देर पहले ही।"
इतने में रमाजी गुड़िया को लेकर आ गईं। और बोलीं -
"आज इतनी जल्दी घर?"
"जी आज से मैंने सोमवार के व्रत शुरू किए हैं। सुबह जल्दी ही निकल गई थी कि मंदिर दर्शन करके समय से दफ्तर पहुँच जाऊँ। मम्मी जी आपकी नींद खराब ना हो इसलिए आपको उठाना उचित नहीं समझा। सुबह इसलिए नवीन से कह गई थी कि आप को बता दें।"
अनु के हाथ में एक लिफाफा था जिसे सासूमाँ के आगे बढ़ा कर बोली, "हैप्पी मदर्स डे मम्मी जी! इसलिए ही जल्दी आई हूँ कि आपको आज शाम खाने के लिए बाहर ले जा सकूँ।"
रमाजी ने उपहार स्वीकार कर धन्यवाद तो किया मगर आँखें चुरा के और मन ही मन स्वयं को धिक्कारते हुए।
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