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द कश्मीर फाइल्स: विवेक रंजन अग्निहोत्री के जज़्बे को सलाम 

टोरोंटो (कैनेडा) में यॉर्क सिनेमा पर दिखाई जा रही विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित फ़िल्म “द कश्मीर फाइल्स” की बड़ी मुश्किल से ऑनलाइन कल रात नौ बजे के शो की टिकटें मिल पाईं। लोगों से खचाखच भरे हॉल में पहुँची तो देखा रात्री के गहन सन्नाटे सी चुप्पी पसरी हुई थी। फ़िल्म देखकर घर लौटी तो दिल दहलाने वाले दृष्यों ने पलक नहीं झपकने दी और सारी रात आँखों में ही कट गई। 

विवेक अग्निहोत्री का संघर्ष पर्दे पर मुखर होकर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और मनोस्थितियों को उकेरने, उनके साथ होने वाले अन्याय को दर्शाने में अत्यंत सफल रहा है। संवेदनशील लेखक ने नरसंहार केवल शब्दों तक सीमित नहीं रखा बल्कि उन सभी चुप्पी वाले स्थानों पर पाँव रखकर प्रत्यक्ष रूप से उस अमानवीय व्यवहार को दर्शाकर बेबाक ख़ुलासा किया है। 

ऐसी मार्मिक फ़िल्म कि कशमीरी पंड़ितों के दर्द की इंतहा को शिद्दत से महसूस करते हुए स्तब्ध सी पौने तीन घंटे तक मेरी आँखें पर्दे पर टँकी रहीं और दिल बराबर हौलता रहा और आँसू दर्द के अतल समंदर में कहीं जमकर रह गए। फ़िल्म का प्रत्येक कलाकार बधाई का पात्र है जिन्होंने अभिनय किया नहीं बल्कि उसे जिया है। फ़िल्म की प्रोमोशन न होने का सुनकर इसे देखने की उत्सुकता और भी अधिक बढ़ गई थी कि आख़िर इसमें ऐसा क्या है? असल में फ़िल्में ऐसी ही बननी चाहिए जो जनमानस की आँखें खोल दें और यह असंभव कार्य विवेक रंजन अग्निहोत्री जी ने कर दिखाया है, उनकी हिम्मत और हौसले को सलाम। बस यही कहूँगी कि प्रत्येक जन को सत्य पर आधारित इस फ़िल्म को अवश्य सपोर्ट करना चाहिए। 

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