परिवर्तन
कथा साहित्य | लघुकथा कृष्णा वर्मा23 Feb 2019
ग्रैजुएट होते ही मुक्ता ने माँ-बाबूजी के सामने अपनी नौकरी का प्रस्ताव रखा। बात माँ के गले ना उतरी। समझाते हुए बोली नौकरी करनी है तो कर लेना लेकिन शादी के बाद, वो भी यदि पति माने तो। मन मसोस कर चुपचाप मुक्ता माँ का उत्तर पी गई। कुछ ही समय में मुक्ता की शादी कर दी गई। ससुराल के रीति-रिवाज़ों को निभाती और घर-गृहस्थी की बारिकियाँ समझते-समझते पति
से नौकरी की बात करने की सोच ही रही थी कि एक रोज़ पता चला वह मातृत्व जगत में पाँव रखने वाली है। अनन्या के जन्म के दो बरस बाद जब नितिन गोदी में आ गया तो सपना हारता सा दिखा। परिस्थितियों के चलते मुक्ता ने अपनी चाह को दबा तो लिया किंतु मरने नहीं दिया। बेटी अनन्या को जी-जान से पढ़ाने-लिखाने में जुट गई। आधुनिक नारी की श्रेणी में खड़ी होने की अपनी चाह को अपनी बेटी द्वारा पूरा करने के सपने देखने लगी। जवान होती अनन्या अक्सर माँ से सुनती रही हम औरतें ही घर-गृहस्थी की चक्की में क्यूँ पिसती रहें, हमारे जीवन में भी परिवर्तन अनिवार्य है। तू कभी किसी से दब कर कोई समझौता मत करना मेरी तरह। देखते-देखते अनन्या ने आई.ए.एस. का इम्तहान पास कर लिया। नौकरी लगते ही फौरन बैंक के एक उच्चाधिकारी आकाश से अनन्या की शादी हो गई और साल भर में मुक्ता नानी बन गई। बेटे के पहले जन्मदिन के बाद ही आकाश को बैंक की ओर से कुछ बरसों के लिए अमरीका भेजा गया। आकाश ने अनन्या को नौकरी से त्यागपत्र दे कर साथ चलने को कहा लेकिन उसने तो माँ की बात पल्ले बाँध रखी थी सो नहीं गई। कुछ ही समय में ऊब कर अनन्या ने अपने सहकर्मी से नज़दीकियाँ बढ़ा लीं और कुछ बरसों बाद आकाश को तालाक के कागज़ भेज राहुल से शादी कर ली। अचानक अनन्या को राहुल के साथ देख माँ-पिता के पाँव ज़मीन तलाशने लगे। आवाक क्यूँ हो गईं माँ तुम? तुम्हीं तो कहती थीं औरत ही क्यों समझौता करे उसके लिए भी तो परिवर्तन जीवन में अनिवार्य है सो मैनें भी परिवर्तन ही तो किया है।
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