रीढ़ की हड्डी
कथा साहित्य | लघुकथा कृष्णा वर्मा1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
चाय की चुस्की लेते हुए पापा ने पूछा, "नेहा कौन सा विषय सोचा नवीं कक्षा के लिए, साईंस या कॉमर्स?”
कुछ सोचते हुए नेहा बोली, "पापा, सांईंस तो बिल्कुल नहीं। यह काट-पीट और ख़ून देखना मेरे बस की बात नहीं। मैं तो कॉमर्स ही लूँगी। कम से कम कल ठाठ से बैंक में ऑफ़िसर तो बन सकूँगी।"
पास बैठी मम्मी और दादी उसकी बात सुन कर खिलखिला उठीं।
प्यार से मुस्कुरा कर नेहा का कंधा थपथपाते हुए पापा बोले, "ठीक है बेटा, जिस विषय में दिलचस्पी हो वही लेना चाहिए। और क्या-क्या नया होगा नवीं कक्षा से? "
आँखों को ऊपर तानते हुए झट से बोली, "पापा, नवीं कक्षा में संगीत और एन.सी.सी भी होती है।आप इनमें से कोई एक को चुन सकते हैं। मेरी बहुत सी सहेलियाँ एन.सी.सी ले रही हैं, मैं भी लेना चाहती हूँ, क्या मैं ले लूँ?"
पापा कुछ कहते उससे पहले ही दादी बोल उठी, "एन.सी.सी लेके क्या सीखेगी? तन कर चलना और बंदूक चलाना, यही ना। भला लड़कियों को कब यह सब शोभा देता है। संगीत सीख, जीवन में कुछ काम आएगा। औरत की ज़ात तो दबी ढकी ही अच्छी लगती है। वह अपनी पलकें और कंधे ज़रा झुका कर चले तो जीवन भर रिश्ते-नाते और घर-गृहस्थी सुर में रहती है, समझी।"
माँ की अवज्ञा करना नहीं चाहते थे इसलिए बिना कुछ बोले ही पापा उठ कर चले गए। मम्मी की ओर गुज़ारिश भरी निगाहों से नेहा ने ताका तो बेबस मम्मी ने भी आँखों से समझा दिया कि सम्भव नहीं।
उदास सी नेहा अपने कमरे में चली गई।
पढ़-लिख कर नेहा बैंक में नौकरी करने लगी। देखते-देखते घर-गृहस्थी वाली भी हो गई। चालीस की उम्र पार करते-करते काम के बोझ से ऐसी दबी कि उसकी कमर जवाब देने लगी।
असहनीय पीड़ा के चलते डाक्टर को दिखाया तो डाक्टर बोला, "आपकी रीढ़ की हड्डी में कुछ गैप आ गया है। और दो-एक हड्डियाँ अपने स्थान से थोड़ी सी खिसक भी गई हैं। पीड़ा से जल्दी छुटकारा पाने के लिए आप सुबह-शाम व्यायाम करो और ज़रा तन कर चला करो। झुक कर चलना रीढ़ के लिए घातक होता है।"
डॉक्टर की बात सुन कर नेहा ने लम्बी साँस ली। फ़ीस के रुपए उनके हाथ पर रखते हुए बोली, “कह तो आप ठीक ही रहे हैं डॉक्टर साहब लेकिन अफ़सोस! तन कर चलने का हक़ तो आधी आबादी को ही मिला है। औरत ज़ात क्या जाने रीढ़ की हड्डी, उसे तन कर चलने की इजाज़त ही कहाँ है? आप हड्डी खिसकने की बात करते हैं, हमारे तो सारे सपने और इच्छाएँ भी खिसक जाती हैं। सच पूछो तो ऐसी सलाह यदि डॉक्टर बेटी के जन्म के समय उसके माता-पिता को दें तो शायद हम औरतों की रीढ़ भी सीधी रह सके।"
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