नदी को जलधि में समाना
शायरी | ग़ज़ल अविनाश ब्यौहार15 Feb 2021
122 122 122
नदी को जलधि में समाना।
समय को न यूँ ही गँवान॥
अगर दर्द पाना लिखा है,
जहाँ में सभी को हँसाना।
यहाँ पर चलन है निराला,
भरोसा न कर, दे बयाना।
मिला है खुला मंच उनको,
न आया मगर सुर लगाना।
ज़माना बहुत संगदिल है,
लुटा आँसुओं का ख़ज़ाना।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीतिका
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}