निर्धन
काव्य साहित्य | कविता आलोक कौशिक1 Feb 2021
पसंद नहीं वर्षा के दिन
नहीं भाती पूस की रात
मिट्टी का घर है उसका
निर्धनता है उसकी ज़ात
श्रम की अग्नि में जब वह
पिघलाता है कृशकाय तन
तब उपार्जन कर पाता है
अपने बच्चों के लिए भोजन
उसकी छोटी-सी भूल पर भी
उठ जाता सबका उस पर हाथ
दर्शक सब उसकी व्यथा के
नहीं देता कोई उसका साथ
मुख से नहीं बताता है कभी
हरेक बात अपने अंतर्मन की
व्यथा समझना हो तो पढ़ लो
भाषा उसके सजल नयन की
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