मेरे दादाजी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता आलोक कौशिक1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
वो हैं सबसे अच्छे
वो सबसे प्यारे हैं
पापा के पिताजी
दादाजी हमारे हैं
जागते हैं सवेरे
भजन सुनाते हैं
जगाकर मुझको
योग करवाते हैं
होती है शाम जब
मैदान लेकर जाते हैं
ख़ुद तो चलते हैं धीरे
मुझको दौड़ाते हैं
खेलते हैं मेरे संग
कहानियाँ सुनाते हैं
पढ़ना भी है ज़रूरी
मुझको समझाते हैं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
हास्य-व्यंग्य कविता
बाल साहित्य कविता
लघुकथा
कहानी
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं