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तांत्रिक

 

वह युवक . . . न धनवान था, न अत्यंत रूपवान। पर उसमें कुछ ऐसा था जो शब्दों में बाँधना कठिन था। कॉलेज के दिनों में ही यह बात सब पर स्पष्ट हो चुकी थी—लड़के, लड़कियाँ, यहाँ तक कि गंभीर प्रोफ़ेसर भी उसके आसपास होने पर अजीब-सा आकर्षण महसूस करते थे। लोग उसकी बातें सुनना चाहते, उसे देखना चाहते, उसके पास रहना चाहते। 

यह आकर्षण किसी बाहरी चकाचौंध से नहीं था। यह भीतर से निकलने वाला एक रहस्यमय चुंबकत्व था—अदृश्य, परन्तु अत्यंत प्रभावी। 

बचपन से ही वह निर्भीक, निडर और प्रतिभाशाली था। उसके गाँव या शहर में जब भी कोई सिद्ध महात्मा, कोई अनुभवी साधक या तांत्रिक आता और उस बालक पर दृष्टि डालता, तो कुछ न कुछ रहस्यमयी भविष्यवाणी कर जाता—“यह बालक साधारण नहीं है . . . इसकी आँखों में जो है, वह संसार के पार का है।” 

लेकिन बालक इन बातों पर केवल मुस्कुरा देता। परिवार वाले जब उसकी जन्मकुंडली में लिखे रहस्यमय संकेत—तंत्र साधना और सिद्धियों की बातें—उसे बताते, तो वह ठहाका लगाकर कहता, “कुंडली तो सबकी कुछ न कुछ कहती ही है! इसमें कौन-सी ख़ास बात है?” 

उसे यह सब अजीब और हास्यास्पद लगता था। 

साल बीते, और वह युवक 26 वर्ष का हुआ। यहीं से उसके जीवन का वास्तविक रहस्य आरंभ हुआ। अचानक, एक के बाद एक, अजीब घटनाएँ घटने लगीं। वह जिस बात की भविष्यवाणी करता, वह सच हो जाती। गंभीर रूप से बीमार लोग केवल उसके स्पर्श से राहत महसूस करने लगे। 

महल्ले के लोग कहते, “इसे किसी भी नकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान पर ले जाओ, वहाँ की हवा ही बदल जाती है। जैसे सारी अशुभ शक्तियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद भाग जाती हों।” 

युवक स्वयं इन घटनाओं को समझ नहीं पा रहा था। उसे लगता—“यह सब संयोग है . . . या शायद लोग ही कुछ ज़्यादा सोचते हैं।” 

लेकिन संयोग कब तक चलता? 

धीरे-धीरे लोगों की भीड़ उसके पास समस्याओं के समाधान के लिए उमड़ने लगी। वे उसे पैसे भी देने लगे, क्योंकि उनके जीवन में वास्तविक बदलाव हो रहे थे। वह चकित था, किन्तु उसके भीतर एक अदृश्य धारा उसे तांत्रिक साधनाओं की ओर खींचने लगी। 

फिर, एक दिन, साधना के क्षणों में उसे अपनी शक्तियों का साक्षात्कार हुआ—उसने समझ लिया कि उसके भीतर जो है, वह साधारण नहीं। 

जिस महल्ले में वह तब रहता था, वहाँ एक अपराधी व्यक्ति का आतंक था। उसने एक हिंसक कुत्ता पाल रखा था। कुत्ता खुला घूमता, स्कूल जाने वाले बच्चों तक को काट चुका था। लेकिन अपराधी का डर ऐसा कि कोई शिकायत करने की हिम्मत नहीं करता। 

जब यह बात तांत्रिक युवक को पता चली, तो उसने निश्चय किया कि वह इस डर को तोड़ेगा। वह जानबूझकर उस गली से गुज़रा। 

कुत्ते ने उसे देखते ही भौंकना शुरू किया। युवक रुका . . . और उसकी आँखों में देखने लगा। 

क्षण भर में चमत्कार घटा—कुत्ता मौन हो गया, वहीं स्थिर हो गया। युवक ने इशारे से बैठने को कहा, और कुत्ता चुपचाप बैठ गया। खिड़कियों और छतों पर खड़े लोग यह दृश्य देख रहे थे। उनके रोंगटे खड़े हो गए। 

अगले दिन से कुत्ता रहस्यमय ढंग से ग़ायब हो गया। 

सत्ताईस दिन बीत गए। कुत्ता कहीं दिखाई नहीं दिया। 

अपराधी व्यक्ति भीतर ही भीतर तिलमिला रहा था—क्योंकि यह कुत्ते का ग़ायब होना नहीं था, यह उसके डर की दीवार ढहने का संकेत था। अट्ठाईसवें दिन उसने गली में उस युवक को रोका और कुत्ते के बारे में पूछा। 

युवक ने केवल मुस्कुरा दिया। 

यह मुस्कान अपराधी के लिए अपमान थी। वह अपशब्द कहने लगा। युवक कुछ नहीं बोला और चुपचाप चला गया। 

उस शाम कुत्ता लौट आया। 

परन्तु अगली सुबह, महल्ला स्तब्ध था—अपराधी व्यक्ति मृत पड़ा था। उसकी गर्दन बुरी तरह फटी हुई थी। 
कुत्ते ने ही अपने मालिक का गला चीर दिया था। 

यह घटना महल्ले के हर कोने में बिजली की तरह फैल गई। अब वह युवक केवल सम्मानित नहीं, भयभीत करने वाला भी बन चुका था। 

घटना के कुछ ही समय बाद, वह युवक शहर छोड़कर राज्य की राजधानी चला गया। वहाँ उसने अपनी तांत्रिक पहचान छुपा ली और साधारण जीवन जीने लगा। 

लेकिन रहस्य को छिपाना सम्भव नहीं था। एक दिन, अचानक मुलाक़ात हुई एक बिज़नेसमैन से। वह बार-बार कहता—“आप साधारण नहीं हैं। आपकी आँखों में अजीब चमक है। आपमें अवश्य कोई शक्ति है।” 

युवक ने बार-बार इनकार किया। अंततः एक दिन, उसने उस बिज़नेसमैन के जीवन के गुप्त रहस्य खोल दिए—वे बातें जो केवल वही जानता था। 

बिज़नेसमैन स्तब्ध रह गया। 

इस घटना के बाद, राजधानी में भी उसकी ख्याति फैलने लगी। राजनेता, फ़िल्म निर्माता, वकील, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर, बड़े ठेकेदार, व्यवसायी . . . यहाँ तक कि इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन तक से लोग उससे मिलने आने लगे। 

वह सबसे कहता कि तांत्रिक पद्धतियों द्वारा आपकी समस्याओं का पूर्ण समाधान तभी सम्भव है जब आप सत्कर्म करेंगे और सदाचारी बनेंगे। आस्था और अंधविश्वास के फ़र्क़ को समझाता। 

इस बार वह अपनी सेवाओं के लिए बड़ी रक़म भी लेने लगा। कई महीने यही सिलसिला चलता रहा। सफलता उसके चारों ओर थी। 

परन्तु भीतर एक टीस थी—अपराधी व्यक्ति और उसकी दो बेटियों की याद। क्योंकि वह जानता था, चाहे प्रत्यक्ष न सही, पर अपराधी की मृत्यु उसकी शक्तियों के कारण ही हुई। 

एक दिन उसने निर्णय लिया—अब वह अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगा। 

उसने सभी परिचितों को संदेश भेज दिया—“अब मैं किसी की समस्या का समाधान नहीं करूँगा।” 

कुछ समय बाद उसने अपना फ़ोन नंबर बदल दिया और उस संसार से कट गया। 

उसने प्रण लिया, 10 वर्षों तक तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगा। और उसने यह प्रण निभाया। 
वह साधारण युवक की तरह जीवन जीने लगा। 

बौद्धिक कार्य किए, विभिन्न अनुभव प्राप्त किए। लेकिन वह जहाँ भी रहा वहाँ सबने उसकी उपस्थिति में अजीब-सा आकर्षण महसूस किया। पर जिसने भी उसकी आभा को पहचान लिया, वह उससे दूरी बना लेता। 

पाखंडी समाज में, सामर्थ्यवान होकर भी धैर्यवान बने रहना, उसके लिए सबसे कठिन परीक्षा थी। 

भले ही उस तांत्रिक युवक ने दस वर्षों तक अपनी शक्तियों को स्पर्श तक न किया हो, फिर भी समय ने एक अजीब न्याय स्वयं ही रचा। जिस-जिस ने उसके हृदय को चोट पहुँचाने की कोशिश की, वे सभी अनजाने ही असहनीय दुःखों और गहरे अंधकार में डूबते चले गए। उनके जीवन में एक ऐसी निरंतर पीड़ा उतर आई, जो दिखाई नहीं देती थी, पर भीतर तक खा जाती थी। 

दस वर्ष पूरे हो चुके थे। उसके मौन का काल यानी उसका प्रण समाप्त हुआ। 

उसने घोषणा की—“अब जो भी व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान चाहता है, मुझसे संपर्क कर सकता है।” 

उसकी रहस्यमय यात्रा का एक नया अध्याय आरंभ हो गया। 

इस घोषणा को आज एक महीने हो गए हैं। इस एक महीने में जितने भी लोगों ने उससे संपर्क किया उसमें सबसे अधिक संख्या भारत के तथाकथित बड़े धार्मिक संस्थाओं, मठों, आश्रमों एवं मंदिरों से जुड़े लोगों (जो स्वयं को बाबा, कथावाचक, पुजारी, संन्यासी, तांत्रिक अथवा धर्म के रक्षक कहते हैं) के हैं। तक़रीबन सबने उससे तंत्र विद्या सीखने की इच्छा जताई। लेकिन इच्छा तो तभी पूर्ण होगी जब मन का भाव निश्छल और निष्कपट रहे। 

“तंत्र कोई खेल नहीं, यह शक्ति भी है और दायित्व भी।”

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