मैं तो हूँ केवल अक्षर
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत आलोक कौशिक1 Mar 2020 (अंक: 151, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मैं तो हूँ केवल अक्षर 
तुम चाहो शब्दकोश बना दो 
लगता वीराना मुझको 
अब तो ये सारा शहर 
याद तू आये मुझको 
हर दिन आठों पहर 
जब चाहे छू ले साहिल 
वो लहर सरफ़रोश बना दो 
अगर दे साथ तू मेरा 
गाऊँ मैं गीत झूम के 
बुझेगी प्यास तेरी भी 
प्यासे लबों को चूम के 
आयते पढ़ूँ मैं इश्क़ की 
इस क़दर मदहोश बना दो 
तेरा प्यार मेरे लिए 
है ठण्डी छाँव की तरह 
पागल शहर में मुझको 
लगे तू गाँव की तरह 
ख़ामोशी न समझे दुनिया 
मुझे समुंदर का ख़रोश बना दो 
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