युवा
काव्य साहित्य | कविता आलोक कौशिक15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
जल रही हो जिसमें
लौ आत्मज्ञान की
समझ हो जिसको
स्वाभिमान की
हृदय में हो जिसके
करुणा व प्रेम भरा
बाधाओं व संघर्षों से
जो नहीं कभी डरा
अपनी संस्कृति की
हो जिसको पहचान
भेदभाव से विमुख
करे सबका सम्मान
स्वदेश से करे जो
प्रेम अपरम्पार
जानता हो चलाना
क़लम व तलवार
राष्ट्र निर्माण में जो
सदैव बने अगुवा
वास्तविक अर्थों में
वही होता है युवा
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
हास्य-व्यंग्य कविता
बाल साहित्य कविता
लघुकथा
कहानी
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं