गुरुर्ब्रह्मा
काव्य साहित्य | कविता आलोक कौशिक15 Jul 2025 (अंक: 281, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
गुरुर्ब्रह्मा जगत्पिता सदा,
गुरुर्विष्णुः पथदर्शिता व्रता।
गुरुर्देवो हरिः शिवो यथा,
नमस्तस्मै गुरोः नमः सदा॥
ज्ञानदीपः तमोहरः प्रभुः,
मौनवाणी रसाश्रु जलभरः।
शिष्यजीवन दिगंतविस्तरः,
प्रेमपाथेय धर्मचिन्मयः॥
शब्दसूत्रविवेचनैकधा,
वेदमूलं समस्तशास्त्रधा।
चित्तनिर्मल बनाय जो भला,
वहै गुरुवर, समस्तभावला॥
न सखा, न पिता, न मातरः,
गुरुवर्यं समं न चापरः।
सत्पथं जो दिखाय संसृते,
पूर्णिमा पर प्रणाम भावभरे॥
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