प्रदूषण
कथा साहित्य | लघुकथा रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’21 Feb 2019
मन्दिर के प्रांगण में जागरण का कार्यक्रम था। औरत, मर्द, बच्चों को मिलाकर दो सौ की भीड़। शहर के दूसरे छोर तक लाउडस्पीकर बिजूखे की तरह टँगे थे। गायक की तीखी आवाज़ से सिर भन्ना गया था।
वह एकदम बाहरी सड़क पर निकल आया । सूखे ठूँठ के पास कोई बैठा था।
"कौन?" उसने पूछा ।
"मैं भगवान हूँ" मरियलसी आवाज़ आई।
"भगवान का इस ठूँठ के पास क्या काम? उसे तो किसी मन्दिर में होना चाहिए।"
"मैं अब तक वहीं था,"  आकृति ने दुःखी स्वर में बताया "शोर के कारण कुछ तबियत गड़बड़ हो गई थी; इसीलिए यहाँ भाग आया हूँ।"
 
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