उस शिकारी से ये पूछो
शायरी | ग़ज़ल देवी नागरानी3 May 2012
उस शिकारी से ये पूछो पर कतरना भी है क्या
पर कटे पंछी बता परवाज़ भरना भी है क्या?
आशियाना ढूँढते हैं, शाख़ से बिछड़े हुए
गिरते उन पत्तों से पूछो, आशियाना भी है क्या?
अब बायाबां ही रहा है उसके बसने के लिए
घर से इक बर्बाद दिल का यूँ उखड़ना भी है क्या?
महफ़िलों में हो गई है शम्अ रौशन, देखिए
पूछो परवानों से उसपर उनका जलना भी है क्या?
वो खड़ी है बाल खोले आईने के सामने
एक बेवा का सँवरना और सजना भी है क्या?
पढ़ ना पाए दिल ने जो लिक्खी लबों पर दास्तां
दिल से निकली आह से पूछो कि लिखना भी है क्या?
जब किसी राही को कोई रहनुमां ही लूट ले
इस तरह 'देवी' भरोसा उस पे रखना भी है क्या।
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