बेटी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रेम कुमार1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
इक्कीसवीं सदी में भी घर की बेटी
बाँधी जा रही है जबरन
खूँटे से
प्रतिबंधित है उसको
बाहर की खुली हवा में
श्वास
और दोस्ती
छोटी उम्र में ही
चूल्हा-चौका करने
और माँजने को बरतन
फेंक दिया जाता है उनको
दूसरों के बाड़ों में
अब भी
हो रही हैं वे
कुरीतियों की शिकार
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