बोझ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रेम कुमार1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पिचके हुए गाल
उभरा हुआ माथा
और
भीतर धँसी आँखें
खींच रहा था रिक्शाचालक
दो लालाओं का बोझ
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