सबकी साँसत में है जान
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रेम कुमार1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
खचाखच भरी बस का ड्राइवर
है नशे में चूर-मदमस्त
दिखाई नहीं दे रहीं उसे
सड़क पर आती-जाती दूसरी गाड़ियाँ
और न है उसे कोई ज़िम्मेदारी का एहसास
चला रहा है गाड़ी रेलमपेल
न कोई गतिरोध
बिना अवरोध
सबकी साँसत में है जान
कहीं हो न जाए नुक़्सान
पहुँच जाएँ न कहीं श्मशान
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