जंगलराज
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रेम कुमार1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
मेरे पिता डरते हैं शहर से
कहते हैं वहाँ है जंगलराज
वहाँ बसते हैं वहशी जानवर
उनके भीतर उगा हुआ है
भयानक जंगल
उनकी आँखों में है हिंसक पशुता
करते हैं राज वहाँ जो
उनकी उँगलियों में हैं ज़हरीले नाखून
न उनका कोई धर्म है
न उनका है कोई ईमान
न उनकी कोई धरती है
न उनका है कोई आसमान
उन्हें पेट की भूख से ज़्यादा
नोट की भूख है
भूख लगने पर वे करते हैं
अपने ही घर में दंगा-फ़साद और आतंक
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