तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं
शायरी | ग़ज़ल सुशीला श्रीवास्तव15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
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तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं
तुम्हारे वास्ते हम आह! भरते हैं
दिखाकर ख़ाब तुम तो भूल जाते हो
उन्हीं ख़ाबों में लेकिन हम विचरते हैं
कभी आकर पुकारो नाम से हम को
ग़मों की भीड़ में हम तो बिखरते हैं
तुम्हारे आगमन से हो ख़ुशी दिल में
तुम्हारी चाह में हम तो सँवरते हैं
बतायें किस तरह तुम को भला हम ये
मुहब्बत में तो आँसू रोज़ झरते हैं
अधूरे रह न जायें प्यार के क़िस्से
यही हम सोचकर दिन – रात डरते हैं
जगाओ दिल में फिर से प्यार के अरमां
चले आओ कि ख़ुद से बात करते हैं
बनाओ रास्ते आसान उल्फ़त के
कँटीले रास्तों से हम गुज़रते हैं
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