आज महफ़िल में मिलते न तुम तो
शायरी | ग़ज़ल सुशीला श्रीवास्तव1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
212 212 212 2 212 212 212 2
आज महफ़िल में मिलते न तुम तो, बात होती भी दो चार कैसे
सोचती ही रही रात भर मैं, हो गया आज दीदार कैसे
ढूँढ़ती ही रही मैं तो तुम को, मिल गये आज क़िस्मत से मुझ को,
प्यार तुम ने किया है मुझी से, आज करती भी इन्कार कैसे
दुनियादारी का था बोझ इतना, कुछ भी अहसास होता नहीं था
दास्तां क्या सुनाऊँ मैं अपनी, वक़्त करता रहा वार कैसे
मैं तो ग़म की रिदा ओढ़कर ही, बे सबब - सी चली जा रही थी
उम्र काटी है तन्हा ही मैंने, क्या बताऊँ थी लाचार कैसे
आज स्वीकार कर लो मुझे तुम, प्यार करती हूँ बस मैं तुम्हीं से
मान लो कल तलक गुमसुदा थी, अब करूँ और इसरार कैसे
बेवफ़ा मैं नहीं जानते हो, हादसों से गुज़रती रही हूँ
मुझको अपनी ख़बर ही कहाँ थी, प्यार का करती इज़हार कैसे
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
- आज महफ़िल में मिलते न तुम तो
- जहाँ कहीं समर हुआ
- ज़रा रुख से अपने हटाओ नक़ाब
- टूटे दिलों की, बातें न करना
- तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं
- नहीं प्यार होगा कभी ये कम, मेरे साथ चल
- बच्चे गये विदेश कि गुलज़ार हो गए
- बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
- मुझको वफ़ा की राह में, ख़ुशियाँ मिलीं कहीं नहीं
- मुझे प्यार कोई न कर सका
कविता
दोहे
कहानी
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं