जा रहा है आज सेहरा बाँध के बारात में
शायरी | ग़ज़ल सुशीला श्रीवास्तव1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
जा रहा है आज सेहरा बाँध के बारात में
बेवफ़ाई दी थी जिस ने कल मुझे सौग़ात में
इश्क़ उल्फ़त प्यार तो अब नाम के ही रह गए
बे-मआनी हो गये सब आज के हालात में
आ गई बारात जब मेरी गली के द्वार तक
गये दिनों की रील घूमी आँखों में उस रात में
दिल लुभाने के हुनर में आज भी अव्वल है वो
लोग आ जाते हैं अब भी उसकी झूठी बात में
टीस - सी उठती है टूटे दिल के शक़ से आज भी
आ गई है ज़िन्दगी अब मुस्तक़िल सदमात में
मेरी उल्फ़त को भुलाकर अब नयी सोहबत में है
जाल बाँधे बैठा है वो फिर किसी की घात में
धोखा खाकर भी दुआ करती हूँ मैं उसके लिए
मिल रही है इसलिए ख़ुशियाँ उसे ख़ैरात में
ज़िन्दगी की हर ख़ुशी देने का वादा था मगर
सिर्फ धोखा ही दिया है उसने तो सौग़ात में
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