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प्रिय नींद नहीं क्यों आती है

 

प्रिय नींद नहीं क्यों आती है
याद विगत की सताती है
देखा था जो स्वप्न सुहाना 
वो तो अब परिपूर्ण हुए। 
 
जिन बाग़ों को सींचा था हमने
वो गुलशन-से मशहूर हुए
फूल चमन के खिल रहे
कलियाँ भी लता-सी खिल रहीं
अब यादों के मंज़र लगते हैं
अन्तस में कुछ चुभते हैं। 
 
समय गति से चलता रहता
पर मन चकरी-सा है घूमता
जीवन तरु के पत्ते जैसा
पल-पल यूँ ही मुरझाता। 
 
आश-निराश के आँगन में 
प्रिय डोल रहा क्यूँ मन बेचारा
हर आहट पे ऐसा लगता
दूर कहीं से कोई पुकार
प्रिय नींद नहीं क्यों आती है। 
 
अपनों की जब याद सताए 
मन अवगाहन में ढल जाये
मृगतृष्णा-सा यह जीवन
मरुस्थल में भटका करता
प्रिय नींद नहीं क्यों आती है। 
 
मन की गगरी बड़ी निराली
जितना भरो उतनी ही ख़ाली
भरती नहीं ख़ुशियों की प्याली
प्रिय नींद नहीं क्यों आती है 
याद विगत की सताती है। 
 
अब ऐसा राग सुनाओ प्रिय 
नींद आ जाये नयनों में
सागर तट की प्यास न बुझती
ऐसा ही मन भीगता है
प्रिय नींद नहीं क्यों आती है। 

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