बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
शायरी | ग़ज़ल सुशीला श्रीवास्तव1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
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बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
जाती नहीं उसके नयन से भी नमी
हर आदमी की चाह होती है बड़ी
पूरी न हो गर जीस्त में ख़लती कमी
कैसे कटेगी ज़िन्दगी उन की यहाँ
जो खेलते हैं रात-दिन घर में रमी
कोई दिखाये राह उनको आज तो
मिलता न जिन को ज्ञान है छाये तमी
सुख भी यहाँ दुख भी यहाँ मिलता रहा
रुकता ही कब चलता रहा है आदमी
मंज़िल मिलेगी एक दिन ये सोचता
इस आस में आँखों में हसरत है जमी
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