प्रिय भाई! प्रिय आलोचक!
काव्य साहित्य | कविता दिविक रमेश12 Jan 2016
एक आवाज़ है, बहुत सधी, लेकिन मौन
पूछती सी
कौन?
एक प्रश्न है यही
बहुत सरल नहीं जिसका उत्तर
अगर देना पड़े खुद
अपने संदर्भ में, और वह भी ईमानदारी से।
समझ यह भी आता है
कि बहुत आसान होता है
व्याख्यायित करना अपने से इतर को
कि वह पेड़ है कि वह जड़ है
कि वह वह है कि वह वह है
और यह भी कि वह ऐसा है और वह वैसा है।
और जो वह और वह भी
होता / नहीं होता हमारी निगाह में
अक्सर वही कुछ होने का
हम करते हैं दावा / या नहीं करते।
और यूँ जाने अनजाने
दे बैठते हैं एक गलत उत्तर
अक्सर।
कुछ समझे
प्रिय भाई
प्रिय आलोचक!
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