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त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन 

बीसवाँ सर्ग: रावण की गुप्तचर लंकिनी

 

इस सर्ग में कवि उद्भ्रांत ने लंकिनी का परिचय अनोखे अंदाज़ में दिया है कि, तुलसी दास की काल-जयी कविता के माध्यम से सहस्रों साल बाद भी उसका नाम लंका के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। कारण था लंका के प्रवेश द्वार पर उसका सोने जैसा सुंदर-सा महल और उसकी अटारी से समुद्र के अनंत जल राशि का अवलोकन करने के कार्य हेतु रावण अपने राजकोष से उसे मासिक वेतन देता था, नौकर-चाकर उसकी सेवा में लगे रहते थे। सही मायने में वह एक नगर वधू थी और रावण की अदम्य शक्ति थी। लंका से सामुद्रिक व्यापार करने आने वाले हर जलपोत उसे रावण की विश्वसनीय जानकर अंशदान देता था और वह उनलोगों से बात करके रावण के शत्रुओं के बारे में जानकारी हासिल करने का गुप्त काम ही करती थी। इसे उद्भ्रांत जी कहते हैं:

“करते हुए उनसे वार्तालाप
मुझे ज्ञात हो जाता था-
कौन-रावण और लंका नगरी का
मित्र-कौन शत्रु है? 
एक तरह से मैं
रावण के गुप्त भेदिए का ही
करती काम।” 

अधिकांश आदिवासी जाति के लोग लंका में आते थे और लंकिनी को देखकर नगरी में प्रवेश करना सौभाग्य का सूचक मानते थे। इस तरह रावण के राज्य में व्यापारिक गतिविधियों की दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति होती जा रही थी। इस वाणिज्यिक विधि को कवि उद्भ्रांत जी ने इन शब्दों में अभिव्यक्त किया हैं:

उनका अवचेतन मन
रावण के अपरिमित बल-वैभव से
हो जाता आक्रांत; 
और इस तरह रावण के निरंतर संवर्धनशील
राज्य के प्रसार में वे
सहायक बन जाते। 

हनुमान से लंकिनी का परिचय भी अलग ढंग से कवि उद्भ्रांत ने करवाया है कि अचानक एक दिन समुद्र से निकल कर लाल-मुख वाला वानर लंका में प्रवेश करने जा रहा था। मगर बिना उसकी तरफ़ ध्यान दिए या अंशदान दिए वह बढ़ता ही जा रहा था। इस पदक्षेप को लंकनी ने अपने स्त्रीत्व का अपमान समझकर क्रोध से तिलमिला उठती है और उसे रोक कर उसके आने का कारण पूछती है, तो हनुमान अपने उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहता है कि वह सीता कि खोज में वहाँ आया है, तो लंकिनी उससे सीमा शुल्क माँगती है। इस पर हनुमान क्रोधित होकर लंकनी के ऊपर मुष्टिका प्रहार कर देता है और लंकिनी को ख़ून की उलटियाँ होने लगती है। उद्भ्रांत जी का यह काव्य बयान करता हैं:

वानर था हृष्ट-पुष्ट
परम शक्तिशाली, 
उसने किलकारी भरते हुए
और खौंखियाकर
अपनी मुष्टिका का
वज्र जैसा एक ही प्रहार
किया मुझ पर विद्युत की गति से, 
—मेरे द्वारा
भवन के सशस्त्र प्रहरियों को
बुलाने से पूर्व! 
 
मेरे मुख से
रक्तधार बह निकली।” 

पुस्तक की विषय सूची

  1. कवि उद्भ्रांत, मिथक और समकालीनता
  2. पहला सर्ग: त्रेता– एक युगीन विवेचन
  3. दूसरा सर्ग: रेणुका की त्रासदी
  4. तीसरा सर्ग: भवानी का संशयग्रस्त मन
  5. चौथा सर्ग: अनुसूया ने शाप दिया महालक्ष्मी को
  6. पाँचवाँ सर्ग: कौशल्या का अंतर्द्वंद्व
  7. छठा सर्ग: सुमित्रा की दूरदर्शिता 
  8. सातवाँ सर्ग: महत्त्वाकांक्षिणी कैकेयी की क्रूरता
  9. आठवाँ सर्ग: रावण की बहन ताड़का
  10. नौवां सर्ग: अहिल्या के साथ इंद्र का छल
  11. दसवाँ सर्ग: मंथरा की कुटिलता
  12. ग्यारहवाँ सर्ग: श्रुतिकीर्ति को नहीं मिली कीर्ति
  13. बारहवाँ सर्ग: उर्मिला का तप
  14. तेरहवाँ सर्ग: माण्डवी की वेदना
  15. चौदहवाँ सर्ग: शान्ता: स्त्री विमर्श की करुणगाथा
  16. पंद्रहवाँ सर्ग: सीता का महाआख्यान
  17. सोलहवाँ सर्ग: शबरी का साहस
  18. सत्रहवाँ सर्ग: शूर्पणखा की महत्त्वाकांक्षा
  19. अठारहवाँ सर्ग: पंचकन्या तारा
  20. उन्नीसवाँ सर्ग: सुरसा की हनुमत परीक्षा
  21. बीसवाँ सर्ग: रावण की गुप्तचर लंकिनी
  22. बाईसवाँ सर्ग: मन्दोदरी:नैतिकता का पाठ
  23. तेइसवाँ सर्ग: सुलोचना का दुख
  24. चौबीसवाँ सर्ग: धोबिन का सत्य
  25. पच्चीसवाँ सर्ग: मैं जननी शम्बूक की: दलित विमर्श की महागाथा
  26. छब्बीसवाँ सर्ग: उपसंहार: त्रेता में कलि

लेखक की पुस्तकें

  1. शहीद बिका नाएक की खोज दिनेश माली
  2. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  3. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  4. भिक्षुणी
  5. गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी
  6. त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन 
  7. स्मृतियों में हार्वर्ड
  8. अंधा कवि

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. अदिति की आत्मकथा
  2. पिताओं और पुत्रों की
  3. नंदिनी साहू की चुनिंदा कहानियाँ

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित कहानी

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