शहीद बिका नाएक की खोज दिनेश माली
अध्याय—5
आज जैसे ही विक्रम वेताल से मिला तो उसका पहला सवाल था, “वेताल श्री, यह बताइए, आपने कुछ दिन पहले बातों-बातों में सारंगधर दास और फ़्रीडा का ज़िक्र किया था। ये लोग कौन हैं? और प्रजा-मण्डल के आंदोलन से इनका क्या लेना-देना था? ये कहाँ के रहने वाले थे? पवित्र मोहन प्रधान जी से इनका क्या सम्बन्ध था?”
“पवित्र बाबू जब राजा के भय से तालचेर से भाग गए थे। सबसे पहले कटक जाकर सारंगधर दास से मिले और उनकी सलाह पर वकील स्वामी विचित्रा नंद से मिलकर युवराज स्कूल के शिक्षक पद से अपना इस्तीफ़ा टेलीग्राम के माध्यम से तालचेर राजा को भिजवा दिया। उसके बाद सारंगधर दास के पास चार आणे जमा करके प्रजामंडल के सदस्य बने और फिर वहीं पर तालचेर प्रजामंडल की स्थापना करने की क़सम खाई। सारंगधर दास से ओड़िशा प्रजामंडल के सचिव थे और उन्होंने पवित्र बाबू को तालचेर के साथ-साथ हिंदोल, आठमल्लिक, पाललहड़ा, बामन्डा राज्यों में प्रजामंडल के विस्तार का कार्यभार सौंपा। इस तरह सारंगधर दास पवित्र बाबू के राजनैतिक गुरु हैं, जिन्होंने उन्हें प्रजामण्डल की स्थापना कर देश के स्वाधीनता संग्राम में कूदने के लिए प्रेरित किया। बहुत दिलचस्प कहानी है। सुनना चाहोगे न?” वेताल ने पूछा।
“हाँ, क्यों नहीं,” विक्रम ने उत्तर दिया।
वेताल सुनाने लगा, “सारंगधर दास को हम ओड़िशा का गाँधी कहते हैं। ये ढेंकानाल के रहने वाले थे। फ़्रीडा उनकी ब्याही पत्नी थी, मगर विदेशी थी। विदेशी होने के बावजूद भी गाँधी जी के प्रति इतना लगाव कि क्या कहूँ!” वेताल ने विक्रम की गाड़ी की पिछली सीट पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
विक्रम ने बिना उसकी तरफ़ देखे हुए कहा, “अरे! तब तो यह कहानी बहुत ही दिलचस्प होगी। कृपया सुनाइए। आज हमें कोई डिस्टर्ब करने वाला भी नहीं हैं। जरडा गाँव वालों ने कणिहा माइंस में स्ट्राइक कर दी है, इसलिए खदान बंद है। उनके भू-विस्थापन से सम्बन्धित समस्याओं का मसला है। डायरेक्टर साहब आने वाले हैं, तब तक मुझे सारंगधर दास जी के बारे में विस्तार से बताइए।”
“ठीक है। मगर पहले मुझे कणिहा के प्रजा-मण्डल मैदान की ओर ले चलो। वहाँ जाने से मेरी बाक़ी यादें तरोताज़ा हो जाती हैं,” वेताल ने विक्रम के चेहरे की ओर देखते हुए कहा।
“क्या बात है, वेताल! आज बड़े मज़ाक़ के मूड में हो।” कहते हुए विक्रम ने अपने ड्राइवर सिपुन से कणिहा के प्रजा-मण्डल मैदान की ओर जाने के लिए कहा।
प्रजा-मण्डल मैदान में पहुँचते ही वेताल खिलखिलाकर हँस पड़ा और कहने लगा, “देखो, वह स्तम्भ! वहाँ मेरा नाम पहले नंबर पर अंकित है। वहाँ चलो। इधर खड़े रहकर मैं आपको सारंगधर दास की कहानी सुनाऊँगा।”
विक्रम ने अपने कंधे पर लदे वेताल की आज्ञा का पालन किया और उसे शहीद स्तम्भ के पास ले गया। उसे अपने कंधे से नीचे उतारकर कहा, “अब सुनाइए, अपनी कहानी इस शहीद स्तम्भ से।”
वेताल शहीद स्तम्भ पर खड़ा हो गया और ऊपर फहरा रहे तिरंगे को एक हाथ से सैल्यूट देते हुए कहने लगा, “सुनो, साहित्यकार विक्रम! 1910 की कड़ाके की सर्दी ख़त्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में बसंत की नवकोपलें खिलने लगीं थी। परिवेश में सूर्य की नवकिरणों की ऊष्मा सभी को सुखद लगती है। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के कुछ भारतीय छात्रों ने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय समाज पर अन्याय, अराजकता और उसके प्रभाव पर एक लघु-चर्चा का आयोजन किया था। चर्चा के अंत में एक उज्ज्वल तनु होनहार युवक ने शान्ति और दृढ़ता से कहा, “भारत को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए, हमें अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ को मज़बूत करना होगा . . . इसलिए हमें कृषि अर्थव्यवस्था पर ध्यान देना होगा . . .। जब मैं यहाँ से भारत लौटूँगा, तो मैं ख़ुद खेती करूँगा . . .। गन्ने से चीनी पैदा करके पैसा कमाऊँगा, और मुनाफ़े से स्कूल और अस्पताल चलाऊँगा।”
उस समय भारतीय छात्रों के साथ बैठी हुई थी, स्विट्ज़रलैंड से आई हुई स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही रूपसी युवती फ़्रीडा हर्थ। भारतीय साहित्य में रुचि रखने वाली वह युवती खड़ी होकर अपने चेहरे पर मुस्कान लिए कहने लगी, “इन्हें देखो . . . आपका युवा उद्यमी . . . शुगर किंग।”
उस दिन की पहली मुलाक़ात में ही उस युवा भारतीय छात्र और उस युवा स्विट्ज़रलैंड की छात्रा के बीच कैलिफ़ोर्निया के आद्य बसंत के ख़ूबसूरत माहौल में प्रेम-बीज अंकुरित हो उठे।
भारतीय युवक ओड़िशा के ढेंकानाल से आकर कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान की पढ़ाई करने वाला छात्र सारंगधर दास और युवती थी फ़्रीडा हर्थ, जो स्विट्ज़रलैंड से आकर स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में ललित कला की पढ़ाई कर रही थी। 1917 में फ़्रीडा हर्थ अमेरिका में सारंगधर दास के साथ परिणय सूत्र में बँध गई। फ़्रीडा हर्थ शादी के बाद ओड़िया घर की बहू बन गई। फ़्रीडा और सारंगधर दास ने सुदूर हवाई द्वीप पर अपने घर-संसार की शुरूआत की। अपनी कड़ी मेहनत और अध्यवसाय के बल पर सारंगधर दास हवाई द्वीप में बहुत जल्दी ही कृषि उद्योग के विशेषज्ञ के रूप में पहचाने जाने लगे। लेकिन उनके मन के एक निभृत कोने में अपने देश के लिए कुछ करने की इच्छा की लहर उछाल मार रही थी। सन 1920 में सारंगधर दास जापान और अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत लौट आए थे।”
“किस विषय पर उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी?” विक्रम ने पूछा।
“वे जापान में शुगर टेक्नॉलोजी विषय पर पढ़ाई करने गए थे, मगर जापान की भाषा समझ में नहीं आने के कारण वे अमेरिका चले आए। जहाँ उनका मुख्य विषय था ‘कृषि विज्ञान’। वेताल का उत्तर पूरा करने से पहले ही विक्रम ने दूसरा सवाल पूछ लिया, “भारत लौटने के बाद सारंगधर दास ने क्या किया?”
कुछ समय तक शून्य में निहारने के बाद वेताल प्रकृतस्थ हुआ और कहने लगा, “भारत लौटने के बाद कृषि उद्योग विशेषज्ञ सारंगधर दास ने अपनी जन्मभूमि ढेंकानाल के पास कामाख्या नगर में 1800 एकड़ ज़मीन ख़रीदकर, उस पर एक कृषि फ़ार्म और गन्ना आधारित उद्योग शुरू किया। ओड़िया घर की बहू फ़्रीडा हर्थ दास ने इसमें उल्लेखनीय योगदान दिया। उस समय पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम की उत्ताल पवन बह रही थी। आम आदमी के साथ-साथ किसानों का उत्पीड़न सारंगधर को व्यथित कर रहा था। बाद में सारंगधर दास ने ‘लंडा देहुरी‘ नाम से ‘कृषक’ पत्रिका में किसानों की शिकायतों और समस्याओं पर कई उपादेय और प्रभावशाली निबंध लिखे। सारंगधर दास बाद में प्रसिद्ध प्रजामंडल आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उसके अग्रणी नेता के रूप में उभरे।”
“मेरे मन में एक सवाल उठा है। अगर इजाज़त दें, तो पूछता हूँ,” प्रश्नवाचक निगाहों से विक्रम ने वेताल की ओर देखा और कहने लगा, “सारंगधर दास अपनी जन्मभूमि ढेंकानाल में चीनी का कारख़ाना खोलना चाहते थे, इसका मतलब वे अवश्य पूँजीवादी दृष्टिकोण एवं विचारधारा को मानने वाले रहे होंगे। उनका गाँधीवादी होने के पीछे क्या राज़ है?”
“यह बात सही है कि वे ढेंकानाल में चीनी का कारख़ाना खोलना चाहते थे, मगर वे भी राजा के सताए हुए दुखी इंसान थे। उन्होंने चीनी का कारख़ाना खोलने के लिए कोलकाता बैंक से लोन लिया था, जो राजा को नागवार गुज़रा। राजा ने अपने हाथियों के पैरों तले उनके खेत रौंदवा दिए। इसलिए वे विप्लवी होकर प्रजामंडल के नेता बने और गाँधी जी के संपर्क में आए,” वेताल ने प्रत्युत्तर में कहा।
“मगर मैंने तो कहीं पढ़ा था कि ढेंकानाल के राजा शुभप्रताप ने उनकी विदेश में उच्च शिक्षा के लिए ख़र्च उठाया था। फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?” विक्रम ने पूछा।
“प्रजामंडल आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण,” वेताल ने उत्तर दिया।
“उनकी पत्नी फ़्रीडा हर्थ दास का देश के स्वाधीनता-संग्राम में क्या योगदान था?” विक्रम ने अगला सवाल पूछा।
“फ़्रीडा हर्थ दास ओड़िया महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में गहन चिंतन कर रही थीं। अमेरिका में रहते हुए फ़्रीडा की प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के परिवार के साथ नज़दीकियाँ बढ़ीं। फिर शान्ति निकेतन में विश्वकवि रवींद्रनाथ की व्यावहारिक शिक्षाओं पर ज्ञान प्राप्त करने के बाद फ़्रीडा हर्थ दास ने ओड़िया महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया।
फ़्रीडा हर्थ स्वाधीन चेतना से ओत-प्रोत थी। ललित कला विशारद और सुलेखिका। भारत आने के बाद महात्मा गाँधी के नेतृत्व और अहिंसक लड़ाई ने फ़्रीडा हर्थ दास को काफ़ी प्रभावित किया। उसके मन में जाग उठी थी महात्मा गाँधी के दर्शन और उनके साथ कुछ समय तक तात्विक विषयों पर विचार-विमर्श करने की इच्छा।
सुलेखिका फ़्रीडा हर्थ दास की अंग्रेज़ी भाषा में सृजनशील दक्षता अद्भुत थी और साथ ही साथ भारतीय साहित्य में अभिरुचि भी। उनके रचनात्मक लेखनी की एक अनूठी अभिव्यक्ति अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई ‘ए मैरिज टू इंडिया’ नामक पुस्तक से। इस पुस्तक में तत्कालीन भारतीय और ओड़िशा की जीवन-शैली का अद्भुत वर्णन है, महात्मा गाँधी के साथ उनकी मुलाक़ातें, साक्षात्कार और वार्तालाप का मार्मिक चित्रण। महात्मा गाँधी के चिंतन पर भगवद गीता के प्रभाव ने फ़्रीडा को अचंभित कर दिया था। सुलेखिका फ़्रीडा के शब्दों में: “भारतवर्ष के महान महाकाव्यों, ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ ने मुझे पूरी तरह से अभिभूत कर दिया था। जो मेरी जन्मभूमि के महाकाव्यों ‘निबेलुंजेन’ और ‘बउव्लफ’ से बहुत ऊपर है . . . भारतीय महागाथा हृदय को छूती है और आत्मा को झकझोर देती है . . . ‘गीता’ का निष्काम कर्म अध्यात्म की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है।”
ओड़िशा में अपने प्रवास के दौरान फ़्रीडा अंतरंग भाव से तत्कालीन ओड़िया जनजीवन पर महात्मा गाँधी के अहिंसक लड़ाई का प्रभाव देख रही थी। उन्हें गाँधी जी के दर्शन और उनके साथ बातचीत करने का अवसर मिला। 1927 में महात्मा गाँधी आध्यात्मिक चेतना की भूमि ओड़िशा में तीसरी बार आए थे। 4 से 21 दिसंबर, 1927 के बीच गाँधीजी ओड़िशा में थे और उन्होंने ओड़िशा के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम और रचनात्मक कार्यों का संदेश दिया। 16 दिसंबर 1927 को गाँधी जी कटक पहुँचे। फ़्रीडा अपने मन में गाँधीजी के दर्शन की इच्छा से कटक पहुँची। गाँधी जी के दर्शन, उनके साथ वार्तालाप और उनका चित्र खींचने की महत्वाकांक्षा लिए चारुकला में पारंगत फ़्रीडा कटक में गाँधीजी के निवास स्थान पर पहुँची। फ़्रीडा के साथ थी, स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास की बहन उर्मिला, जो महात्मा गाँधी के लिए खाने-पीने की व्यवस्था के लिए ओड़िशा आई हुई थीं।
वह दिन गाँधी जी का मौन दिवस था। फिर भी फ़्रीडा ने उर्मिला को गाँधीजी के साथ उसकी तस्वीर बनाने की इच्छा ज़ाहिर कर दी थी। उर्मिला ने समझाया, “गाँधीजी की तस्वीर बनाने के लिए ज़्यादा देर तक बैठाना ठीक नहीं होगा। बल्कि गाँधीजी जब पहिया घुमाने बैठेंगे तो आप उनका चित्र बना लेना।”
फ़्रीडा निराश नहीं हुई और यथाशक्ति अपना काम करने लगी।
तभी फ़्रीडा के जीवन का महेंद्र मुहूर्त आया, लंबे समय के लिए बहुत नज़दीक से गाँधीजी के दर्शन के साथ। सही समय पर गाँधीजी चरखा घुमाने बैठ गए। उस कमरे के अंदर गाँधीजी की दत्तक पुत्री मीरा बेन और मैडलिन स्लेड नामक एक युवा अँग्रेज़ लड़की (जो गाँधीजी की अनुयायी बन गई थी) कोठरी में और थी उर्मिला, जो गाँधीजी को फल और दूध परोस रही थी। ठीक उसी समय फ़्रीडा ने बहुत डरते हुए कमरे में प्रवेश किया और गाँधीजी को पहली बार व्यक्तिगत रूप से अपनी आँखों के सामने देखा। फ़्रीडा के शब्दों में: “घुटने तक लंबी धोती और कंधे पर लटके हुए अंगरखा वाले क्षीण शरीरधारी दिव्य पुरुष के चेहरे पर अल्प मुस्कान थी, करुणात्मक और अद्वितीय . . . उनके चारों तरफ़ शान्ति की आभा छाई हुई थी और दाँत झड़ने के बाद कम दाँतों वाले उनेक सुंदर चेहरे पर प्रखर तेज फैला हुआ था।”
फ़्रीडा ने जल्दी से सूत कातते हुए गाँधीजी का चित्र बनाया। कुछ देर बाद गाँधीजी ने उस छवि को देखा और मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उस रात फ़्रीडा ने बिना सोए तस्वीर को पूरा करके अगले दिन गाँधीजी को दिखाया। गाँधीजी ने मुस्कुराते हुए फ़्रीडा से कहा, “आपको मुझे पारिश्रमिक देना होगा, और वह होगा आप स्वयं सूत कातोगी और कपड़ा बुनोगी।” गाँधीजी ने फिर से फ़्रीडा को ओड़िशा में महिलाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने का अनुरोध किया था। ओड़िया परिवार की बेटी फ़्रीडा हर्थ दास के लिए यह एक बड़े गर्व और सम्मान की बात थी।
ओड़िया परिवार की बहू फ़्रीडा हर्थ दास ने गाँधीजी के बारे में अपनी पुस्तक में अद्भुत वर्णन किया है, “जिस तरह भगवान बुद्ध की चेतना ने हज़ारों साल पहले भारत की भूमि को प्रबुद्ध किया था, उसी तरह गाँधीजी की चेतना ने भारत में आध्यात्मिक जागृति की एक नई लहर शुरू की है।”
गाँधी जी को अपने सामने देखकर बनाई गई उनकी जीवंत तस्वीर अनूठी और ख़ूबसूरत लग रही थी। ओड़िया परिवार की बहू फ़्रीडा हर्थ दास द्वारा बनाई गई वह दुर्लभ छवि, ओड़िशा माटी और ओड़िया जाति के साथ गाँधीजी के संबंधों का सर्वोत्तम स्नेहासिक्त संतक है।
जय हिन्द!!
भारत माता की जय हो!
उत्कल भूमि की जय हो!
जय ओड़िशा!
जय तालचेर!
जय कणिहा!
जय हमारा प्रजा-मण्डल!!
ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद!!”
भारत माता, उत्कल भूमि, तालचेर, कणिहा, प्रजा-मण्डल की जय-जयकार करते हुए वेताल शहीद स्तम्भ से नीचे उतर गया और पूछने लगा, “कैसी लगी तुम्हें, सारंगधर दास और फ़्रीडा हर्थ दास की प्रेम-कहानी?”
“बहुत अच्छी लगी। मैं अभिभूत हूँ, मंत्र-मुग्ध हूँ। प्रेम-कहानी तो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ दर्शन की याद दिलाती हैं। इस प्रेम-कहानी का अंत कैसे हुआ?” विक्रम ने अवचेतन मन से पूछा।
“इस दंपती की कोई संतान नहीं थी, इस वजह से फ़्रीडा हर्थ दास अपने पति सारंगधर दास से आज्ञा लेकर अपनी जन्म-भूमि लौट गई। ओड़िशा के प्रख्यात लेखक विभूति पटनायक ने उनकी जीवनी में लिखा है।” वेताल ने उत्तर दिया।
“मैंने उनकी जीवनी नहीं पढ़ी है, मगर आपके मुँह से उनकी कहानी सुनकर मुझे पढ़ने का बहुत मन हो रहा है,” कहते हुए विक्रम ने वेताल के प्रति अपना हार्दिक आभार जताया। वेताल ने विक्रम की जेब से मीठा पान निकाला और उसे लेते हुए गगन मार्ग से ऊपर उड़ते हुए सुदूर कहीं और चला गया, प्यार से कहते हुए, “फिर मिलेंगे, दोस्त!”
पुस्तक की विषय सूची
- पुरोवाक्
- न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज भी
- अध्याय– 1
- अध्याय–2
- अध्याय–3
- अध्याय–4
- अध्याय—5
लेखक की पुस्तकें
लेखक की अनूदित पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
अनूदित कहानी
साहित्यिक आलेख
- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
पुस्तक समीक्षा
- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
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