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आकांक्षा

 

भूषण जी अपने बेटे के लिए रिश्तेदारों के साथ लड़की देखने के लिए तैयार हो रहे थे। तभी उनके पड़ोसी मित्र ने टोक दिया, “अरे! चार काहे जा रहे हैं एक और ले लीजिए। पाँच का नंबर शुभ होता है।”

जैसे बिल्ली के रास्ता काटने पर आशंका घर कर लेती है ठीक वैसे ही हालत मित्र के टोके जाने पर हो गई। अब बात काटकर जाना भी अच्छा नहीं था। भूषण जी अपने उसी मित्र कमलकांत को साथ ले लिए। 

लड़की वाले के यहाँ पहुँचने पर ख़ूब ख़ातिरदारी हुई सबकी। आतिथ्य भाव से सब बहुत ख़ुश भी थे। मन ही मन अंदाज़ा लगाते हुए एक-दूसरे को बता भी रहे थे कि पार्टी कितनी मज़बूत है। घर को कितना बढ़िया से सजा रखा है। एंटिक पीसेस, दिवाल घड़ियाँ, क्रॉकरी, कर्टन, सोफ़ा सब एक से एक। 

“भई भूषण! इस रिश्तेदारी से तो भाग्य खुल जाएँगे तुम्हारे बेटे की। काश मुझे भी ऐसा ही एक संतान वाला रिश्ता मिलता मेरे बेटे के लिए  . . . भाग्यवान हो।”

“कमलकांत! सम्बन्ध व्यावहारिक होना चाहिए व्यापारिक नहीं। तुम्हारे इसी व्यापारिक बुद्धि ने कोई रिश्ता आजतक बनने नहीं दिया। 

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