बीच का
कथा साहित्य | लघुकथा सपना चन्द्रा15 Apr 2023 (अंक: 227, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
ओह! . . . फिर टूट गया बटन! ऊपर का होता तो छोड़ा जा सकता था।
पर ये तो बीच का है। मुझे मीटिंग में पहुँचने में कहीं देर न हो जाए।
आज ही इसे भी मसखरी सूझी है। हमेशा ‘बीच’ वाले मामले पर अटक जाता हूँ।
रमेश बाबू की पत्नी रमा चार वर्ष पूर्व परलोक गमन कर चुकी थीं। बच्चे भी सभी अपने-अपने में व्यस्त।
एक बेटा और एक बेटी, दोनों ही अब्रॉड जा बसे।
रमेशजी को बुलाया जाता पर उनका दिल नहीं लगता ठीक वैसे ही बच्चों का भी था। यहाँ के लोग बहुत फ़ुर्सत में रहते हैं। ऐसा उनको लगता था।
अपने आप को व्यस्त रखने के लिए रमेश बाबू समाज की सेवा में पूरी तरह लग गए थे। हर किसी की समस्या को सुनते और अपने स्तर से उसका समाधान भी निकालते।
आज बटन टाँकते हुए सूई चुभ गई थी, ख़्यालों में जो खो गए थे। पत्नी की एक-एक बात, क्रियाकलाप चलचित्र की भाँति दिमाग़ की नसों में दौड़ रही थी।
रमा को भी कई बार सूई चुभ जाती होगी। पर कभी जताया ही नहीं। आज अगर मैं अकेला न होता तो इस दर्द को महसूस नहीं कर पाता।
उऽऽऽहहह . . . कितनी टीस मार रही है। सूई का दवाब बीच वाली अंगुली ही झेलती है।
रमा भी तो बीच सफ़र में छोड़ गई। इस बीच से मेरा सम्बन्ध इतना गहरा क्यूँ है . . .?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
सांस्कृतिक कथा
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं