तीसरा
कथा साहित्य | लघुकथा सपना चन्द्रा1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कुछ भीड़ एक जगह एकत्रित हो जाती है! फिर एक आवाज़ पर दो भागों में बँट जाती है।
कुछ देर के बाद फिर से वही आवाज़ आती है . . . सायरन की . . . और भीड़ दो गुटों में बँटकर दो विपरीत दिशाओं में भागती है।
तभी किसी तीसरे का आगमन होता है परन्तु वह हमेशा की तरह अकेला होता है।
उसके पास नियम, क़ानून, क़ायदा की किताब होती है . . . उसे वह बारी-बारी से देखता है और अट्टहास करता है।
“ये तीनों ही आज मेरे पास हैं पहला भूमिका बनाता है, दूसरा बाँधता है और तीसरा . . . हा . . .हा . . . हा . . .हा!
“तीसरा ऽऽऽऽ . . . जिसे भूमिका से लेना-देना नहीं होता . . . जो भी करना है इन दोनों को करना है।
“दंगा, . . . चोरी . . . डकैती . . . ख़ून-ख़राबा सब इनके हिस्से में . . . मैं तीसरा हमेशा बचकर निकल जाता हूँ . . .”
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