भुवनेश्वरी पाण्डे – हाइकु – 002
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’1 Jul 2025 (अंक: 280, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
1.
यादों का धुआँ
सब और छा गया
डूबती जाऊँ।
2.
माँगता खड़ा
समुदाय बीच मैं
सुनो पुकार।
3.
पूरा छा गया
उसका रंग यहाँ
नशे में सब।
4.
अचानक से
तेरा सामने आना
पर्दा हटा के।
5.
प्रगति करो
मगर धीरे धीरे
ख़ूब ठहरे।
6.
सागर तट
फैली रही सीपियाँ
कौन बटोरे?
7.
मत पकड़ो
यूँ जाते बादलों को
खुला गगन।
8.
उलझे धागे
तुम्ही सुलझाओगे।
कठपुतली।
9.
पाँचों है साक्षी
पाँचों हैं शरारती (उदंड)
शांत न होते।
10.
फेरी नज़र
काया पलट गयी
सत्य स्वरूप।
11.
तुम आ मिले
हुई काया सचेत
दिव्य हो, आभा
12.
व्योम में लीन
दृष्टि के सामने ही
है परमात्मा।
13.
तारावलियाँ
क्यों सकुचाती होतीं
भानुप्रताप।
14.
ये तो तुम्ही हो
माटी का ढेर सारा
पड़ा रहेगा।
15.
विलग कर
प्रकट हो ही जाता
है सत्यप्रकाश।
16.
खेले बालक
अपने ही खिलौने
सभी घूमते।
17.
साँसों से छूना
नेत्रों से प्यार करो
बात पूरी हो।
18.
फिर मिलेंगे
वादा निकला झूठा
हर जाई था।
19.
तूफ़ाँ में घिरे
दो अजनबी दिल
बहते गए।
20.
कर इशारा
भरी भीड़ में बुला
छला था उसे
21.
पास न आना
कम है मेरी उम्र
गर फिसली।
22.
बाँकपन था
दोनों जग से जुदा
उसे छूना न।
23.
कैसी लहरें
चाँदी सी चमकती
पास न आती।
24.
बुला के पास
दूर चला गया वो
है टूटा स्वप्न
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