डायल मी *माधव*
काव्य साहित्य | कविता भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’3 May 2012
समाचार में है विज्ञप्ति यही
रेडियो पर भी है शोर यही
टी.वी चले तो विज्ञप्ति यही,
पहले था नम्बर केवल,
यानी 1से शून्य तक,
अब नई तकनीक ने
आसान किया सबका संर्पक साधन,
केवल नाम डायल करो
तो पहुँच होती गंतव्य तक
जैसे पारलर वाली ने
नम्बर दिया है 905458-रमा,
तो डायल करो 905458-आर ए एम ए,
यही तो जाने कब से,
अपनी प्राचीन पुस्तकें बताती रहीं
सभी ज्ञानी ध्यानी कहते यही,
केवल नाम लोगे तो ,
पहुँचोगे अपने इष्ट तक
किन्तु मानता नहीं कोई।
पर उपयोग में अब ला रहे
समाजी उसी विज्ञान को,
आगे के नम्बर तो नगण्य हैं
क्योकि समान हैं सब,
अन्तिम बात है प्रमुख,
उसी का नाम डायल करना है
कृपया सम्पर्क के लिए
मुझे डायल करें *कृष्णा*
या मुझ तक पहुँचें *केशव*
या केवल दबाएँ *माधव*
ये एक दिन बोले भगवान
अपनी गीता से निकल कर,
ध्यानी ध्यान में था, उसे चेतना हुई,
सब नम्बर भूला,
याद रहा अब बस *माधव*
जब भी डायल करता *माधव*
जब भी दबाता केवल *केशव*
दूसरी ओर से एक ही आवज आती,
मधुर, मादक,
मीठी मिश्री सी,
कृपया प्रतीक्षा करें आप कतार में हैं।
कृष्णा हैं एक, आवाज दे रहे अनेक,
अनेकों की अनेक व्याधियाँ
अनेकों की अनेक इच्छाऐं
अनेकों की अनेक आशायें
स्वप्नों की तो बात - ना पूछो,
सबके कलह का राज - ना पूछो
बताते सब अपने को मासूम,
सब कहते दूसरे को जाहिल,
सब गलती अपनी वो करते फिल्टर,
पर कृष्णा मुस्काते,
व्यथा कथा सब सुनते जाते,
वक्त तो लगेगा ही ज्यादा
कृपया प्रतीक्षा करें, आप कतार में हैं।
जोर यहाँ चलता नहीं कोई
शोर यहाँ होता नहीं कोई,
सभी की यहाँ बात हो रही
वनटूवन,
बिल पेमैन्ट की, नहीं बिसात कोई,
वे योग मुद्रा में बैठे हैं
स्वाहा, स्वधा उन्हें सब है पता,
अब तुम उन्हें क्या सुनाओगे
कतार में हो,
प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त होगी,
उपयुक्त फल प्रतिफल पाओगे,
जब बात होगी तब सब
सब कुछ कहना भूल जाओगे,
कृपया प्रतीक्षा करो,
-----------------तुम कतार में हो।।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
स्मृति लेख
कविता - हाइकु
कहानी
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं