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माँ की रसोई

बालपन में सुबह, आँख खुली तो, 
अंगीठी में जलने वाली समिधा, 
संपूर्ण घर को सुगंधित करती रही, 
बटलोई में, कांसे वाली कढ़ाई से, 
उनकी मद्धम आवाज़ें, 
फिर घी में भूना गया दलिया, 
और दाल के अदहन के उफन जाने की सुगंध, 
फिर प्यार से, पटा सरकाते हुऐ, 
पास बुला कर, 
बैठने को कहना, 
प्यार से दलिया परोसना, 
उस पर गरम दूध, 
मिला कर देना, 
हमारा पूर्ण अवलोकन, करना।
उधर सात बजे सुबह स्कूल जाने की जल्दी में, 
हम लोगों का गरम- गरम खाना, 
जल्दी-जल्दी भागना, 
तब ये सब नहीं था—
माँ को रोज़ गाल पर प्यार करना और कहना – 
"आइ लव यू", 
निरंतर ये जताने के लिए कि हम प्यार करते हैं।
आज मेरी रसोई में माँ का दिया प्यार ही, 
सब रस घोलता है।
उनके प्यार की सुगंध मुझमें से आती है॥

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