मित्र तुम मौन रहो
काव्य साहित्य | कविता भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
चारों दिशाएँ गुंजित हैं
उन्हें तुम सुनो
मित्र तुम मौन रहो।
धरती, गगन रंगों से
जीवन से भरा है,
मित्र तुम उसे देखो,
आनंद भर लो,
मित्र तुम मौन रहो
पुष्पों की, भूमि की,
मानव के वक्षों की,
सुगंध तुम श्वासों में भर लो,
मित्र तुम मौन रहो।
सम्बंधों की मधुरता,
क्रोध की अग्नि,
अधिकार की आशा,
महत्वकांक्षाओं की सरिता,
बैर के डंक, दग़े की कालिमा,
केवल देखो!
मित्र तुम मौन रहो।
वेद पढ़, श्लोक, मंत्र,
ईश गुण गान, सुनो
मित्र तुम मौन रहो।
जन्म मृत्यु की अनादि सरिता,
श्राप, क्षमा की दोहरी माया समझो,
किन्तु मित्र तुम मौन रहो।
इन्द्रिय सुख ही सारा सुख है,
ऐसा मान मत चलो
यदि अपने नौ मित्रों में से
एक को, केवल एक को
नियंत्रित कर पाएँ, तो सारा जग तेरा है,
मित्र तुम मौन रहो॥
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