माटी का तिलक
काव्य साहित्य | कविता भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
कभी माटी का तिलक ,
भाल पर करना चाहिए,
उसके कुछ गुणों को
आत्मसात करना चाहिए,
बिना प्रज्ज्वलित हुए,
सब भस्म करना चाहिए,
नीचे रह कर, दूसरे को
खड़ा करना चाहिए,
बिना स्वर किये,
मूल नाद सुनना चाहिए,।
कभी माटी का तिलक,
भाल पर करना चाहिए,
जल, अग्नि, वायु,आकाश,
को समेटना चाहिए,
बड़ा, छोटा, अभेद कर
अपनाना चाहिए,
सच्चा झूठा सबको
अपने रंग में रँगना चाहिए,
माटी जैसा धैर्य
धारण करना चाहिए।
कभी माटी का तिलक
भाल पर करना चाहिए,
जहाँ काल क्रम, पहुँचा दे,
उसे अपनाना चाहिए,
जो भूमि अन्न दे,
उसका मान रखना चाहिए,
माटी का अतुलित
सम्मान करना चाहिए,
गुणवान के साथ अपना
रंग बदलना चाहिए।
माटी का तिलक
भाल पर करना चाहिए,
पूर्वजों की चिता भस्म जान कर,
देह पर लिपट जाने देना चाहिए,
उसी में आरम्भ व अन्त
देख लेना चाहिए,
निर्मोही हो, सबको
गले लगाना चाहिए,
शांत हो, आकाश की
गतियाँ देखना चाहिए।
माटी का तिलक
भाल पर करना चाहिए,
माँ, अपने जैसी उद्भूती दो,
क्षमा दो, धैर्य दो,
आपके जैसा मौन चाहिए,
आश्रितों का सम्बल,
सहारा बनना चाहिए,
जीवन सरिता का वेग सह कर ,
मार्ग देना चाहिए॥
कभी माटी का तिलक,
भाल पर करना चाहिए॥
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