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कोमल अनुभव

वो हमारी आपकी शायद पहली ही यात्रा थी। 

जब, टैक्सी में आप हमारी बाईं ओर बैठे थे, कितना संकोच भी था, कुछ पास बने रहने की इच्छा, बहुत सा संकोच, और आपके पास से आती हुई सुगंध अपन लोगों के नये वस्त्रों की। दबी-दबी-सी मेल-मिलाप की इच्छा, साथ ही अनजाना भय। टैक्सी तीव्र गति से चल रही थी। लखनऊ से कानपुर के बीच का राजमार्ग, दोनों ओर से बड़े वृक्षों से घिरा हुआ, मार्ग पर प्रकाश अठखेलियाँ करती हमसे संपर्क सा करतीं हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहतीं, निरंतर दौड़ रही थीं, कि आप ने कुछ पूछना सा चाहा था। उस स्वर से जो रोम-रोम झंकृत हो गया था, वहीं न जान क्यों, चाहना बन गया है अब। वो तुम्हें अधिकार देने की इच्छा, पर तुम्हारे चेहरे को ना देख पाना, बड़ा कोमल अनुभव था, आज वही कुछ सोच कर, जानना चाहती हूँ, क्या मैं अतृप्त ही तो नहीं रह गई। तस्वीरों से तो क्या होगा। 

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