नाग
काव्य साहित्य | कविता भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’3 May 2012
तुमसे तो नाग ही अच्छा
जो डस लेता है,
वक़्त आते ही ज़हर अपना
उगल देता है,
उसकी पहचान है अच्छी
हर कोई देख के सम्हल तो लेता है
तुम तो नाग से गये-गुजरे हो
ज़हर लिए फिरते हो
मोर बने नाचते हो
डस लेने का साहस नहीं
‘पाले’ की तरह पड़ते हो
पाल पड़ने का भी एक
मौसम होता है
तुम तो इस धर्म का भी
नहीं संवरण कर पाते -
किस जात के हो और
किन लोगों के बीच रहते हो
अरे अपनी पहचान तो
ठीक से बनाओ
नाग की तरह डसना है
तो नाग ही कहलाओ।
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