सफ़र
काव्य साहित्य | कविता भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’3 May 2012
एक हम-सफ़र चाहिए,
आत्मा को शरीर चाहिए
शरीर को मन चाहिए,
मन को तन चाहिए,
तन को एक हृदय चाहिए,
हृदय को हम सफ़र चाहिए,
हम-सफ़र हो हमदम,
फिर उन्हें क्या चाहिए?
चाह की अन्त नहीं यहाँ अभी
जो है उसे बाँटने वाला चाहिए,
जो वो मिल जाऐ तो,
फिर ज़्यादा नहीं चाहिए।
कोई देखने,दिखाने वाला चाहिए
हा, सुनने सुनाने वाला चाहिए
खट्टी-मीठी बताने वाला चाहिए,
एक, बस एक हम-सफ़र चाहिए।
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