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ढूँढ़ मुझे

तस्वीरों में ना ढूँढ़ मुझे, 
तस्वीरों में मैं अनेकों की तलाश हूँ, 
मुझे पाना है तो ढूँढ़ मुझे मेरे सब्र में। 
 
प्रसिद्धि में ना ढूँढ़ मुझे, 
प्रसिद्धि में मैं अनेकों की उत्तेजना हूँ, 
मुझे जानना है तो ढूँढ़ मुझे मेरे अकेलेपन में। 
 
रूप प्रतिरूप में ना ढूँढ़ मुझे, 
रूप में मैं अनेकों की उत्सुकता हूँ, 
मुझे पहचानना है तो ढूँढ़ मुझे किसी रिश्ते की वफ़ा में। 
 
पहेलियों में ना ढूँढ़ मुझे, 
पहेलियों में मैं अनेकों की उलझन हूँ, 
मुझे परखना है तो ढूँढ़ मुझे 
हर एक सवाल के जवाब में। 
 
अभाव में न ढूँढ़ मुझे, 
कमियों में मैं अनेकों की संतुष्टि हूँ, 
मुझे अपनाना है तो ढूँढ़ मुझे मेरी समक्षता में। 
 
क्या ये आसान नहीं भाषा? 
क्या ये है मेरी परिभाषा? 
क्या खो दिया है मैंने ख़ुद को किसी और में? 
या फिर आज उसे सिर्फ़ मेरी ही तलाश है? 

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