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वो मुझमें मैं उसमें

मैं जानती नहीं हूँ क्या था उसमें, 
लगने लगा बस अपना मुझमें, 
वो आया कुछ तो इस तरह लेकिन, 
मैं बसने लगी कुछ उसमें कुछ मुझमें। 
  
मैंने बाँधा नहीं उसे मेरे आँचल में, 
बस बँध गई हूँ उसके हर पल में, 
वो हँसता है जब जब, मैं खिलती हूँ ख़ुद में, 
अब आँखें बस ठहरें उसके ही अक्स में।
  
मैं रहने लगी हूँ कुछ उसमें कुछ मुझमें, 
और कहने लगी हूँ वो बसता है मुझमें, 
कुछ पल ही बचे हैं बस उनके उस पल में, 
फिर कहेंगे सब कि वो मुझमें मैं उसमें। 
  
मैं जानती नहीं हूँ क्या था उसमें, 
लगने लगा बस अपना मुझमें। 

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टिप्पणियाँ

Shalini 2022/10/08 08:25 AM

Beautifully written ... don't know how to express through words ...

Ankita Joshi 2022/10/06 06:38 PM

So beautifully written. The rhyming is so well penned.

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